Employment/Education & India

क़ुतुब मीनार पर भी विवाद जारी है ?

13 Mar 2024 2k+ Views
क़ुतुब मीनार पर भी विवाद जारी है ?

अपने भारत की राजधानी दिल्ली में मौजूद है भारतीय इतिहास का एक ऐसा टुकड़ा जो अपने आप में कई राज दबाए बैठा है जिसे हम कुतुब मीनार के नाम से जानते हैं| ये इमारत हिंदुस्तान के उसे दौर की निशानी है जब भारतीय जमीन पर विदेशी घुसपैठियों का राज था| आप सभी ने कुतुब मीनार के बारे में सुना होगा या फिर इतिहास की किताब में इसके बारे में पढ़ा होगा| कुतुब मीनार को दिल्ली का सबसे पहला और पुराना स्मारक भी कहा जाता है जिसे किसी विदेशी ने बनवाया था| कुतुब मीनार दिल्ली के महरौली में स्थित है तथा यूनेस्को के अनुसार यह एक वर्ल्ड हेरिटेज साइट भी है| इस पूरी जगह को कुतुब मीनार कंपलेक्स कहते हैं| यहां पर कुतुब मीनार के साथ-साथ और भी बहुत सी पुरानी चीजें हैं| 

आज इस लेख के जरिये हम कुतुब मीनार के इतिहास को बारीकी से समझने की कोशिश करेंगे| आज से लगभग 822 साल पहले कुतुब मीनार को सन 1199 में बनाना शुरू किया गया था और इसके लगभग 21 साल बाद सन 1220 में यह बनकर तैयार हो गयी| ऐसा माना जाता हे कि इसका निर्माण दिल्ली सल्तनत के सबसे पहले राजा कुतुबुद्दीन ऐबक जो की तुर्किस्तान से हिंदुस्तान आया था ने शुरू करवाया था और इसे पूरा करवाया उसके दामाद शमसुद्दीन ने| इस मीनार की ऊंचाई लगभग 72.5  मीटर (तकरीबन 337  फीट) हे | यह दुनिया का सबसे ऊँचा मीनार भी माना जाता है और इसे विक्ट्री टावर भी कहा जाता है| इस मीनार पर यदि कोई इंसान चढ़े तो उसे 30 से 35 मिनट का समय लगेगा क्योंकि इसके अंदर की बनी सीढ़ियां बहुत ही घुमावदार है|

यह भी माना जाता है कि जब विदेशी घुसपैठियो ने दिल्ली पर आक्रमण किया और आखिरी हिंदू राजा पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया तब उन्होंने इस टावर को बनवाया , एक निशानी के तौर पर कि दिल्ली में अब उन्हीं की हुकूमत है| यानी दिल्ली अब उनकी है| यह बातें सुनने में जितनी आसान लगती है उतनी है नहीं आगे बढ़ने से पहले हम आपको यह सूचित कर दें कि कुतुब मीनार के बनने के बाद भी बहुत से राजाओं ने और बहुत सी वंशावलियों ने यहां पर राज किया और सब ने इसमें कुछ ना कुछ बदलाव किए| कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसको बनवाना शुरू किया उसके बाद उसका बेटा आया फिर उसका दामाद आया फिर अलाउद्दीन खिलजी आया फिर फिरोजशाह तुगलक आया फिर मुगल आये फिर आखिर में अंग्रेज भी आए तथा उन सब ने कुछ ना कुछ बदलाव किये| कुतुब मीनार वर्तमान में जैसा दिखता है 800 साल पहले यह ऐसा बिल्कुल भी नहीं दिखता था| 

कुतुब मीनार जिस पत्थर से बनवाया गया है उसे रेड सेंड स्टोन के नाम से जाना जाता है वह दिल्ली में नहीं पाया जाता है| इसे उस समय राजस्थान से लाया गया था| अगर पहली नजर में कुतुब मीनार को देखा जाए तो एक इस्लामिक ढाँचे जैसा ही लगता है| एक्सपर्ट का यह मानना है कि कुतुब मीनार हिंदुओं के द्वारा बनाया गया है| देखने वाली बात तो यह है की कुतुब मीनार से थोड़ा आगे हिंदू मंदिरों के अवशेष मिलते हैं वह पूरी जगह जिसे कुतुब मीनार काम्प्लेक्स कहा जाता है| यहां असलियत में 27 हिंदू और जैन मंदिर थे जो की प्राचीन भारत के समय से वहां पर खड़े थे इन मंदिरों को जबरन तोड़कर उनके बचे हुए हिस्सों को इस्तेमाल करके यहां पर सबसे पहले मस्जिद बनाई गई| इतना ही नहीं है यदि आप आप ध्यान से देखेंगे तो चारों ओर हिंदू देवी देवताओं के स्टैचू मिलेंगे| गौर करने वाली बातें हैं कि इन सभी मूर्तियों के चेहरे बिगाड़ दिए गए हैं, क्योंकि इस्लाम में ऐसा माना जाता है कि किसी भी धार्मिक जगह पर मूर्ति नहीं होनी चाहिए| कुछ खम्बो पर हम कमल का डिजाइन देख सकते हैं जो कि हिंदू धर्म में काफी महत्वपूर्ण जगह रखता है साथ ही यहां पर हम मंदिरों की घंटियां भी देख सकते हैं| बल्कि इस्लामी धर्म में घंटियों को अशुभ माना जाता है और यह भी कहा जाता है की घंटिया शैतान का एक औजार है, फिर भी यह डिजाइन मीनार पर क्यों है|

कुछ लोगों का कहना है कि जिन लोगों ने कुतुब मीनार बनाया था उन्हें हिंदू टेंपल्स का डिजाइन पसंद आया और इसीलिए उन्होंने इसका संदर्भ कुतुब मीनार पर दिया है| अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों किया गया होगा बात यह है कि यह जो विदेशी घुसपैठिये थे यह सिर्फ तुर्किस्तान के नहीं इनके बाद आए मुगल भी थे उन्हें पता था कि हिंदू लोग अपनी आस्था से जुड़े हुए हैं अगर हमें इस जगह पर अपना राज दिखाना है तो हमें इन धर्मो को खत्म करना होगा|

उस समय के लोग बहुत ही ज्यादा धार्मिक थे उनके लिए पूजा पाठ और भगवान की आस्था ही सबसे बड़ा जीवन जीने का साधन था| और यह सिर्फ 27 हिंदू जैन मंदिर ही नहीं बल्कि जब तक यह विदेशी घुसपैठिये यहां पर रहे उन्होंने हजारों मंदिरों को तोड़ा| सबसे अजीब बात यह है कि बहुत से लोग कुतुब मीनार गए होंगे परंतु हमें इन सब चीजों के बारे में जानकारी नहीं दी गई| जैसे कि हमने बताया कि 800 साल पहले यह मीनार जैसा था वर्तमान में वैसा नहीं है इसमें बहुत से बदलाव किये गए थे| सन 1368 में अक्टूबर के महीने में कुतुब मीनार पर बिजली गिरी जिसने कुतुब मीनार के ऊपर के दो मंजिलों को खत्म कर दिया| तब फिरोजशाह तुगलक ने इसकी मरम्मत करवाई और ऊपर के दो मंजिलों की मरम्मत में सफेद मार्बल के पत्थरों का इस्तेमाल किया|

कुतुब मीनार में एक शाही दरवाजा है जिसे अलाउद्दीन खिलजी ने बनवाया था जब दिल्ली सल्तनत पर उसका राज था| अगर हम कुतुब मीनार के छज्जों पर ध्यान दें तो यह पहले वाले कुतुब मीनार से काफी अलग है सन 1800 के करीब हिंदुस्तान में अंग्रेज आए और उनके हिस्से में कुतुब मीनार आया तब उन्हें लगा की कुतुब मीनार थोड़ा अधूरा है और फिर उन्होंने इसके छज्जों पर काम करवाया| 

हम यह भी ध्यान दे सकते हैं कि कुतुब मीनार के खभों में अरबी भाषा में कुछ लिखा हुआ है, ऐसा माना जाता है कि जब विदेशी घुसपैठिये दिल्ली सल्तनत पर राज कर रहे थे तो उन्होंने कुछ लोगों को अपना दास बना लिया था और उन्हीं लोगों ने इस मीनार को भी बनाया है| कुतुब मीनार परिसर में एक बहुत ही रोचक चीज एक लोहे का खंबा है जब एक्सपर्ट्स ने इस आयरन पिलर यानी लोहे के खंभे पर रिसर्च करी, तब उन्होंने पाया कि यह पांचवीं शताब्दी का है और यह 98.6  प्रतिशत लोहे से बना है और 1.4  इसमें अन्य तत्व है 14वी शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी ने इस पिलर को यहां पर बनवाया था| इस पिलर पर कुछ संस्कृत शिलालेख में लिखा हुआ है| अहमद शाह दुर्रानी जो कि अफगानिस्तान का एक राजा था और दुर्रानी साम्राज्य का खोजकर्ता था, जब वह दिल्ली आया और इस काम्प्लेक्स को देखा तब उसे लगा कि इस पिलर की यहां पर कोई आवश्यकता नहीं है और इसको गिरा दिया जाना चाहिए और उसने तोप के गोले इस पिलर पर छोड़े लेकिन तोप के गोले उसे छूकर निकल गए| इस पर वह हैरान रह गया, और बहुत से लोगों ने उसे बोला कि इस पिलर को मत गिराओ क्योंकि अगर यह पिलर गिरा तो पूरा काम्प्लेक्स तबाह हो जाएगा|

तो यह थी क़ुतुब मीनार की कहानी, यदि आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो हमारे लेख को अपने दोस्तों और जानने वालो के साथ भी साझा करें| यदि कोई सुझाव हो तो हमसे संपर्क करें | धन्यवाद|